मोहक मकड़जाल

सुखपुरा ग्राम में जाने के लिये हम घर से निकल पड़े | सुनने में आया था कि वहां गहरा सुख और गहरी शान्ति है | सुखपुरा में रहने वाला कोई स्थायी निवासी तो मुझे नहीं मिला था पर बहुत से राहगीर सुखपुरा हो आने के सम्बन्ध में झूठे सच्चे दावे किया करते थे | उन्होंने बताया था कि वहां पहुंचने का रास्ता कठिन साधना की मांग करता है | मिर्च ,मिठाई तेल छोड़ना पडेगा | सूखी  रोटी और बिना मसाले की उबली सब्जी लेकर भूख को शान्त तो कर लिया जाय पर उसी स्तर  तक जहां और कुछ खानें की इच्छा बनी  रहे | आचरण में झूठ से परहेज और सच से प्यार करना होगा | व्यवहार में शत्रु से भी मित्रता करनी होगी | वाणी में सरलता और मिठास का समावेश करना होगा | मन के घोड़े की लगाम कसनी होगी | अगर इतना कर पाओ तो सुखपुरा की राह तुम्हारे लिये स्वयं ही खुल जायेगी | उपरोक्त सभी बातों का ज्ञान मुझे मेरी किशोरावस्था के आसपास ही होने लगा था | अपने आस -पास के वयोवृद्ध नर -नारियों को मैं सत्संग में जाते और आते देखा करता था | कइयों के गले में मालायें पडी थीं | कइयों के हाँथ में सुमरिनी थी | सभी कोई न कोई हरिवाक्य मुँह से उच्चारित किया करते थे | राम -राम ,हरिओम , राधा -कृष्ण , सीता -राम ,राधे -राधे ,और जय शिवशंकर जैसे पवित्र और दिव्य प्रभुनामों की निरन्तर बहनें वाली शब्द धाराओं से भी मैं पूरा परिचित हो चुका था | इतना सब जानकार भी मैं एक लम्बे समय तक सुखपुरा पहुंचने के मार्ग को क्यों नहीं खोज सका यह मेरे लिये एक आश्चर्य का विषय है | कई  बार जब चिन्तन की गहराइयों में डूबने लगता हूँ तो मानसिक व्याख्या में कुछ स्पष्ट बिन्दु बिखरते दिखायी पड़ते हैं | सबसे पहला स्पष्ट बिन्दु जो मेरी समझ के दायरे में आता है वह है सुखपुरा की भौगोलिक  स्थिति के बारे में | भारत के अनेक राज्यों में सुखपुरी ,सुखपुरा ,सुखधाम।, सुखनगरी जैसे अनेक ग्राम , कस्बे और नगर पाये जा सकते हैं | यह दूसरी बात है कि इनमें सुख पाने वालों की संख्या नगण्य हो  और शान्ति तो शायद किसी के आस -पास भी न फटकती हो | मुझे लगा कि शायद सुखपुरा की कोई भौगोलिक स्थिति है ही नहीं  अब यदि भौगोलिक स्थिति है ही नहीं तो वहां पहुंचने का कोई भू -मार्ग तो होना ही चाहिये | मुझे आश्चर्य हुआ कि  काफी कुछ लोग सुखपुरा हो आने का दावा कैसे करते हैं | बचकानी किस्से कहानियों में न जाने क्यों मैं गहरे अर्थ खोजने में लग जाता हूँ | सत्संग में होने वाले प्रवचन मुझे भीतर से कुरेदते हैं और मैं उनमें दिये गये वज़नदार सुझावो  की जमीनी हकीकत तलाश करने लगता हूँ | माया -मोह से मुक्त रहने का चमकदार सन्देश तो भारत के साधारण से साधारण पण्डित या धर्मोपदेशक का सबसे सबल मनोवैज्ञानिक अस्त्र है | गायत्री परिवार की एक पत्रिका में कुछ दिन पहले एक प्रभावी कहानी छपी थी | कोई उपदेशक बड़ी मुश्किल से अपने परिवार का खर्च चला रहे थे किशोर बच्चे के लिये सरकारी स्कूल से घर आने के बाद कुछ बकरियां खरीद दी थीं | उन बकरियों को चराकर 12 -13  साल का यह किशोर घर  के लिये कुछ दूध पा लेता था और कुछ दूध बेचकर और खर्चों का जुगाड़ करता था | पंडित जी दान -दक्षिणा से जो मिल जाता उसे परिवार संचालन में लगाकर अपनी जिम्मेवारी का निर्वाहन करते थे पर इतने पर भी अभाव की विभीषका उस परिवार को निरन्तर घेरे रहती थी | आजादी के बाद भारत के केन्द्रीय सरकार में कई अत्यन्त समर्थ प्रधानमन्त्री गद्दी पर बैठे हैं पर सुरसा का सा मुंह फैलाने वाली महंगाई निरन्तर विस्तार पाती जा रही है | इस भयानक मंहगाई में थोड़ी बहुत दान- दक्षिणां और थोड़ा बहुत बकरी दूध से पांच प्राणियों का परिवार कैसे चलता | किशोर की एक छोटी बहन और छोटा भाई दूध -भात की मांग करते थे और फिर आज कल के बच्चों के फैशनेबुल कपडे पण्डित जी कहाँ से जुटाते | संस्कृत का प्रारम्भिक ज्ञान किसी नौकरी के दरवाजे तो खोलता नहीं और आज कल चढ़ावा उन्हीं मन्दिरों मठाधीशों ,महन्तों और योगा गुरुओं के पास पहुँच पाता है जो अपने रहन -सहन में राजसी ठाठ को महत्व देते हों | पण्डित जी उस दिन एक मजदूर के घर बुलाये गये थे | मजदूर के लड़के के मुण्डन पर कुछ आयोजन हुआ था | मजदूर पण्डित जी का पड़ोसी था  और कई बार अपनी दिहाड़ी को अपने दो बच्चों के फैशन के कपड़े लाने में खर्च कर देता था | पण्डित जी उसे सदा बताते रहते थे कि अधिक मोह करना ठीक नहीं है | यह संसार नश्वर है | कल का कोई भरोसा नहीं | कुछ महीनों के बाद मजदूर की पत्नी तीसरी बार गर्भवती हुयी पहले वह भी पति के साथ जाकर कुछ कमा लाती थी | अब कमाई काम और खर्च ज्यादा मजदूर का छोटा बच्चा जो अभी तीन साल से कम था दूध के अभाव में कमजोर होने लगा |  गर्मी आयी , सप्लाई के पानी के लिये मार -काट होने लगी | नजदीक के एक हैण्ड पम्प का पानी ही इस्तेमाल होने लगा | छोटे बच्चे को डायरिया हो गया | झाड़- फूक करवाई फिर प्राइमरी हेल्थ सेन्टर ले गया  पर देर हो चुकी थी | बच्चे का समय आ गया था या भारतीय समाज के निम्नतम वर्ग के एक मजदूर का दुर्भाग्य था कि बच्चा संसार छोड़कर चला गया | घर में कोहराम मच गया | गर्भवती माँ रोते -रोते बेहाल हो गयी | उसके प्राणों पर बन आयी आखिर पड़ोस से पण्डित जी को सांत्वना देने के लिये बुलाया गया | पण्डितजी ने धैर्य पूर्वक दुःख सहन करने की बात कही  , बताया कि आँसू बहाना निरर्थक है आत्मा का आगमन और पुनरागमन हुआ करता है | किसी आत्मा को इस घर के माध्यम से इस धरती पर आना था | अब वह आत्मा इस शरीर से मुक्त होकर किसी योनि में देह धारण करेगी | अमर आत्मा के लिये रोना नासमझी के अतिरिक्त और कुछ नहीं है | बिचारी माँ ने पण्डित जी की बात को गुरुवाक्य लेकर अपने को शान्त कर लिया | जीवन फिर पुराने ढर्रे पर चलने लगा | कुछ दिन बाद जब मजदूर काम से लौटा तो उसने देखा कि पण्डित जी बाहर बरामदे में बैठे हुए रो रहे हैं और उनका 11 - 12  वर्ष का किशोर लड़का भी दुःख भरा मुँह लेकर उनके पास बैठा है | मजदूर ने पास पहुंचकर प्रणाम किया और पूछा कि पण्डितजी रो क्यों रहे हैं | पंडितजी ने कहा अरे लुकई मेरी सबसे अच्छी बकरी मर गयी है | उसी के दूध से खर्च चलता था | अब गृहस्थी कैसे चलेगी | लुकई ने पण्डित जी से जवाब में कोई धर्मोपदेश की बात नहीं की केवल इतना पूछा कि वह क्या मदद कर सकता है