शब्दों को ब्रम्ह के रूप में निरूपित किया गया है और अक्षर का अर्थ ही होता है क्षरण से मुक्त नियंता | एक युग था जब शब्दों को लिपिबद्ध करना संभ्भव ही नहीं था क्योंकि उस समय संभ्भवतः कोई लिपि ही नहीं थी | ध्वनियों से शब्द कैसे बनें और शब्दों के साथ सार्थकता कैसे जुडी तथा फिर नियमन , जकड़न और व्याकरण की विधायें कैसे विकसित हुयीं इसका लाखों वर्ष पहले का अपना एक अलग आश्चर्य लोक है | भाषा विज्ञान के अध्येता और मनीषी अतीत के गर्भ में छिपे भाषा के जन्म और विकास के रहस्यों को खोलनें में लगे हैं | अब इतना सुनिश्चित हो गया है कि ध्वनि और लय जिसे हम आज संगीत के एक विभेद से जानते हैं भाषा से पहले अस्तित्व में आ गयी थी | यही कारण है कि संगीत मानव जाति को कहीं बहुत अधिक गहरे जा कर झकझोरता है| बिना अर्थ की सार्थकता के भी वह अन्तर्मन की गहराइयों को तरंगायित कर देता है | पर बात चल रही थी भाषा की | आज छपा हुआ शब्द संभ्भवतः इतना महत्वपूर्ण नहीं रह गया है जितना बोला हुआ शब्द | जिसे हम अंग्रेजी में Conversation कहते हैं वह एक कला के रूप में विकसित हो रहा है | युद्योग और व्यापार, विपणन और प्रबन्धन सभी कुछ Conversation की कुशलता पर आधारित है | अपने अपने देशों की भौगोलिक सीमाओं में जो भी भाषायेँ बोली जाती हैं उन सब में वही व्यक्ति संपन्न होता है जिसे बातचीत या संम्भाषण की कला आती है | दरअसल इसे कला न कहकर हुनर कहना चाहिये | समाजशास्त्र विशारदों का आज यह सर्वसम्मत मत है कि उचित सम्भाषण की कला हमें लोगों तक पहुँचाती है और एक अटूट भाई चारे का सम्बन्ध स्थापित करती है | और तो और भिन्न -भिन्न भाषियों से भी सार्थक आंगिक सम्भाषण के द्वारा गहरा सम्पर्क सूत्र स्थापित किया जा सकता है | व्यापार और बाजार यह तो बात चीत से संचालित ही होते हैं पर एक और प्रकार की बातचीत भी होती है जिसे हम एक प्रकार की बुद्धि पर आधारित मानसिक क्रिया कलाप के रूप में ले सकते हैं | जिस बात को बिहारी ने ' बतरस ' कहा है उसी से कुछ मिलती जुलती धारणा है ब्रिटेन के राजनीतिक दार्शनिक माइकेल ओके शाट की | उनका कहना है कि सामान्य बात चीत व्यापार और लेन देन से अलग हटकर बिना तैयार की हुयी स्वाभाविक मानसिक प्रक्रिया है जो शब्दों के माध्यम से व्यक्ति के समाज सम्बन्धी मूल्य बोधों को उजागर करती है | अंग्रेजी इतिहास में अठारहवीं शताब्दी में डा o सैमुअल जानसन सारे लन्दन में अपनी बातचीत के लिये आदर्श के रूप में मानें जाते थे पर उनकी बातचीत में गहरा तीखापन और ऊंची गडगड़ाहट से भरे शब्दों की भरमार है | अठारहवीं सदी की चमत्कृत करने वाली भाषा इक्कीसवीं सदी के लिये शायद उपयोगी साबित न हो | अब बातचीत न केवल सरल होनी चाहिये बल्कि शब्दों के चयन में पारस्परिक आदर , सहनशीलता और विनम्रता का भाव होना चाहिये | बातचीत में थोड़ा बहुत हास्य का पुट भी उसे और अधिक मधुर बना देता है पर प्रयास यह होना चाहिये कि हास्य कटूक्ति और व्यंग्य न बन जाय | मनोवैज्ञानिक यह मानते हैं कि बातचीत के विषय उसका फैलाव और उसकी गहरायी बातचीत करने वालों के सामाजिक दायरे और कार्य क्षेत्र की विभिन्नताओं पर निर्भर होता है | पर यह भी देखा गया है कि पुरुषों की आपस की बातचीत कां दायरा स्त्रियों की बातचीत के दायरे से अलग किस्म का होता है | समाज वैज्ञानिक बातचीत की इस लिंगीय विषमता को ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य से जोड़कर उसकी अलग अलग व्याख्यायें करते हैं | जो भी हो हमें देखनें में आता है कि स्त्रियां अधिकतर गृहस्थी सम्बन्धी बातों की चर्चा में लगी रहती हैं जबकि पुरुषों की बातचीत का दायरा राजनीति , प्रशासन और सामाजिक संरचना के आस पास घूमता रहता है | कई बार यह देखने में आता है कि बातचीत में बहुत अधिक कुशल व्यक्ति भी सभाओं के मंच पर अच्छे वक्ता साबित नहीं होते इसी प्रकार कुछ वक्ता जो मंच पर सफल माने जा सकते हैं बातचीत के हुनर में असफल हो जाते हैं | दरअसल हमें किसी भी हुनर और ज्ञान की किसी भी शाखा को एक विशेष प्रकार की मानसिक अनुशासनता से जोड़कर देखना चाहिये आवश्यक नहीं कि अंग्रेजी भाषा का विद्वान हिन्दी भाषा का भी अधिकारी वक्ता बन जाय | महान गणितज्ञ रामानुजन जिनकी प्रतिभा को कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के महानतम गणितज्ञ प्रो ० हार्डी ने अद्वितीय बताया था और जिन्हें उन्होंने 1 से 100 तक प्रतिभा माप के पैमाने में पूरे 100 नम्बर पर रखा था वे नान साइन्सेज सब्जेक्ट्स में अनुतीर्ण हो गये थे | क्यों और कैसे प्रतिभा एक मुखी , बहु मुखी और शतमुखी हो जाती है इस विषय में अभी तक मनोवैज्ञानिक कोई एक सुनिश्चित राय नहीं बना सके हैं | हाँ यह माना जा रहा है कि बात चीत में या सामाजिक या राजनैतिक सन्दर्भों में बोले गये छोटे -छोटे वाक्यों में उचित शब्दों का चयन मष्तिष्क के प्रारम्भिक लालन पालन में पाये गये प्रेरणा बिन्दुओं से नियन्त्रित होता है | कई बार ऐसा होता है कि समाज या राजनीति में घटने वाली तत्कालीन उत्तेजक घटनायें अनजानें ही वक्ता के भाषा नियन्त्रण मैकेनिजम को ढीला कर देती हैं | ऐसी हालत में वक्ता अपनी बात कह देनें के बाद ही यह महसूस कर पाता है कि उसे अपनी बात कहने के लिये दूसरे शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिए था | यह शब्द उसके भाषा भण्डार में थे और इसकी सुनिश्चित योजना बद्धता भी उसकी भाषा समझ में शामिल थी पर उत्तेजक परिस्थितियों ने सन्तुलित सम्भाषण को भड़काऊ चोला पहना दिया | ऐसा ही कुछ उन राजनैतिक नेताओं के साथ होता रहता है जिन्हें मीडिया या विरोधी नेता संविधान विरोधी भाषणों के लिये दोषी ठहराते रहते हैं | आइये अब सम्भाषण की मनोवैज्ञानिक गहराइयों से ऊपर उठकर व्यक्ति विशिष्ट के सम्बन्ध में प्रयोग में लाये गये शब्दों के औचित्य और अनौचित्य पर विचार करें | हिन्दुस्तान में जाति और धर्म के नाम पर कितनी राजनैतिक टोलियां हल्लागुल्ला मचाकर सड़क प्रदर्शन करती रहती हैं यह तो सभी जानते हैं कि अमरीका में भी अभी तक काली गोरी मानसिकता का पूरा मिलन नहीं हो सका है | यह बात सर्वविदित नहीं है | अफ्रीकन मूल के अश्वेत अमेरिकन प्रेसिडेन्ट बराक ओबामा के पद पर आसीन होने के बाद ऐसा माना जाता है कि अमरीका ने श्वेत -अश्वेत के भेद को भुलाकर मानव समानता को सम्पूर्ण रूप से स्वीकार कर लिया है पर शायद ऐसा नहीं है | आप सब विश्वमीडिया में जोर -शोर से छपी इस घटना से तो परिचित ही होंगें हारवर्ड युनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर हेनरी गेट्स ने अपने घर पर पहुँच कर यह पाया कि उनकी ताली ठीक तरीके से दरवाजे को खोल नहीं पा रही है | उन्होंने दरवाजे पर लगी हुयी कुंडी (Door Knob )से छेड़छाड़ करना शुरू कर दिया | किसी पड़ोसी ने यह देखकर 911 न ० पर फोन कर दिया | पड़ोसी ने समझा कि शायद कोई काले रंग का अफ्रीकन अमेरिकन दरवाजा तोड़कर अन्दर घुसकर चोरी करना चाहता है | 911 न ० पर फोन से खबर पाते ही उस क्षेत्र के पुलिस सार्जेंट जेम्स क्राउले वहां पहुँच गये कहना न होगा कि जेम्स क्राउले गोरे अमेरिकन हैं उन्होंने प्रोफ़ेसर गेट्स से Identity Card माँगा | प्रो ० गेट्स जो एक जाने माने अफ्रीकन अमेरिकन विद्वान हैं और जिन्हें पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा भी जानते हैं सार्जेंट के इस व्यवहार को बद्तमीजी समझ बैठे | हालांकि क़ानून के मुताबिक़ सार्जेंट क्राउले को पहचान पत्र मांगनें का हक़ था | प्रो ० गेट्स ने हारवर्ड युनिवर्सिटी से मिला आईडेन्टिटी कार्ड सार्जेंट को दिखाया पर उस कार्ड पर प्रो ० गेट्स का प्रमाणित फोटो नहीं लगा हुआ था | सार्जेंट ने कहा कि शायद यह I. Card भी झूठा है | प्रो ० गेट्स और नाराज हो गये और बात ही बात में उन्होंने गोरे सार्जेंट को बहुत उल्टी सीधी सुना डाली | अब अमरीका का यह क़ानून है कि अगर आप किसी पुलिस सार्जेंट से झगड़ा करने लगें तो आपको हथकड़ी पहनायी जा सकती है | प्रो ० गेट्स के साथ भी ऐसा ही हुआ यद्यपि मामला तुरन्त ही रफा दफा हो गया पर चूंकि सार्जेंट गोरा अमेरिकन था और प्रो ० गेट्स काले अमेरिकन थे इसलिये न केवल अमेरिकन मीडिया बल्कि विश्व मीडिया ने भी इस घटना को नये नये अर्थों में पेश किया | जब बराक ओबामा को इस घटना का पता लगा तो उन्होंने कहा , "The police had acted stupidly." पर शीघ्र ही उन्हें लगा कि शायद उन्होंने उचित शब्दों का प्रयोग नहीं किया है | आखिरकार सार्जेंट क्राउले ने कुछ भी तो गैरकानूनी नहीं किया था | पर प्रो ० हेनरी गेट्स भी तो गलत नहीं थे अपने ही घर के दरवाजे पर उन्हें एक उठाईगीर समझकर एक गोरा सार्जेंट बेइज्जत करे तो वे अपना क्रोध कैसे रोक सकते थे | क्या हुआ यदि उनके पास पहचान पत्र पर उनका फोटो नहीं था | आखिर हारवर्ड युनिवर्सिटी द्वारा दिया गया पहचानपत्र तो अपने सही रूप में तो उनके पास था ही | उन्हें लगा कि एक सार्जेंट जो हारवर्ड युनिवर्सिटी की अकेडमिक ऊँचाइयों का अन्दाजा तक नहीं लगा सकता एक मौक़ा पाकर उन्हें बेइज्जत कर रहा है पर क़ानून के सीमित दायरे में तो सार्जेन्ट क्राउले भी तो ठीक ही था | जब तक पहचान पक्की न हो जाय आतंकवाद से शंकित अमरीका में शक बना ही रहता है | जब मीडिया ने यह बात कहकर उछालनी शुरू की कि सार्जेंट क्राउले उन अमेरिकन्स को जो गोरे नहीं हैं उन्हें दुर्व्योहार का शिकार बनाते हैं तो सार्जेंट क्राउले ने अपने क्षेत्र के लैटिन अमेरिकन और अश्वेत पुलिस मैनों के साथ सड़कों पर परेड कर यह साबित किया कि वे गोर काले में कोई भेद नहीं करते तब प्रेसिडेन्ट ओबामा को लगा कि शायद पुलिस पर दोष लगाकर उन्होंने उचित नहीं किया | Stupidly की जगह उन्हें किसी दूसरे शब्द का प्रयोग करना चाहिये था | अगर वे इस शब्द की जगह यह कह देते ' Acted in hast' यानि जल्दबाजी की तो बात इतनी न बिगड़ती | अब क्या किया जाय गोर काले के भेदभाव की चर्चा अमरीका में उठने लगी | कट्टर खोपड़ियां खेमे बन्दी में लग गयीं | विरोधी पार्टी मौक़ा तलाशती ही रहती हैं | पर बराक ओबामा तो बराक ओबामा ही हैं | उन्होंने तुरन्त ही भड़कती आग को शमन करने की तरकीब सोच ली उन्होंने स्वीकार किया कि उन्होंने उचित शब्द इस्तेमाल नहीं किये और जो कहना चाहते थे ठीक से नहीं कह पाये इसके साथ ही उन्होंने गेट्स और क्राउले दोनों को व्हाइट हाउस में वियर की एक ग्लास पीने के लिये आमंत्रित किया | बराक ओबामा के साथ वाइस प्रेसीडेन्ट Jo Vidon थे जो गोरे अमेरिकन भी हैं गोरे सार्जेन्ट क्राउले और गोरे वाइस प्रेसीडेन्ट Jo Vidon तथा अश्वेत बराक ओबामा और प्रो ० गेट्स सब बियर की एक एक ग्लास पर मिल बैठे न तो गेट्स ने माफी मांगीं न सार्जेन्ट क्राउले ने | बराक ओबामा ने कहा कि दो अच्छे इन्सान एक गलतफहमी के दायरे में फंस गये सच पूछो तो उनमें कोई भी गलत नहीं है | मैं अपने को ही इस मिस अंडरस्टैण्डिंग के लिये जिम्मेदार समझता हूँ | आओ हम सब अमेरिकन अपने इस महान देश के प्रति नतमस्तक होकर समर्पित हों | चारो ने उठकर हाथ मिलाये और सार्जेन्ट ने भी अनुभव किया कि व्हाइट हाउस में उसका अपना भी कोई प्रतिनिधि बैठा है |
संभ्भाषण